वक़्त (Waqt)
वक़्त ये वक़्त गुज़र ही जाएगा, कोई रास्ता निकल ही आएगा। माना अंधियारा है मगर, फिर भोर का वक़्त भी आएगा। तिनके-तिनके हो जाएगा वृक्ष, फिर हरा मगर हो जाएगा। लू के थपेड़ों को चीर कर, बादल सुख का भी आएगा। कुछ डगमग-डगमग क़दमों से, हमें चलना फिर से आएगा। रेत का टीला पल भर में, यूँ ही फ़ना हो जाएगा। © 2021 गौरव माथुर